अपने देश का अथवा अपने देश मे निर्मित स्वदेशी कहलाती है ।  

वृहद अर्थ में किसी भौगोलिक क्षेत्र में जन्मी निर्णित या कल्पित वस्तुएं, नीतियों, विचारों, को स्वदेशी कहते है । 
वर्ष 1905 के बंग-भंग विरोधी जनजागरण से स्वदेशी आंदोलन को बहुत बल मिला यह 1911 तक चला और गांधी जी के भारत मे पर्दापण के पूर्व सभी सफल आंदोलन में से एक था 
देश के बड़े बुद्धिजीवी प्रभुत लोग इस के समर्थन में थे । 
देश मे स्वदेशी लाओ देश बचाओ नारे बहुत प्रचलित हुए । 
आगे चल कर यही आंदोलन गांधी जी के स्वतंत्रता आंदोलन का भी केंद्र बिंदु बन गया 
गांधी जी ने इन आंदोलन को आजादी को स्वराज की आत्मा कहा था । 
स्वदेशी ही क्यों  ? 
अपने देश का बना अपने हाथों से बना हर स्वदेशी निर्मित वस्तु बनाने वाला अपना जीवन  लगाता  है 
अपना देश अपना कार्य 
भारत के लोगो के लिए रोजगार सृजन करना है । 
इस का एक ही मकसद है कि विदेशी निर्मित वस्तु का विरोध करके अपने देश मे निर्मित वस्तुओं को ज्यादा से ज्यादा बाजार में बेचना ताकि अपने देश की आर्थिक स्थिति मजबूत हो सके तथा देश मे बेरोजगारो को रोजगार उपलब्ध हो सके । 
इस से भारत की आर्थिक स्थिति व विकास के लिए अपनाया गया साधन  रोजगार सुगम हो सके । 
यह बात सच है और मैं भी मानती हूं कि आज तक देश मे जो भी विकास हुआ है वह वास्तव में स्वदेशी के आधार पर ही हुआ है 
आज कुल पूंजी निवेश में विदेशी पूँजी का हिस्सा 2 प्रतिशत से भी कम है । 
आज इसी कारण से देश मे मेडिकल से निर्मित मेडिकल उपकरण सम्पूर्ण विश्व मे जाने जाते है इस कारण से आज देश मे स्वदेशी  मेडिकल उपकरण अपनाकर मेडिकल जगत सम्पूर्ण विश्व मे अपना वर्चस्व कायम रखे हुए हैं । 
आज अंतरिक्ष क्षेत्र में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान केंद्र जो पूरी तरह से भारतीय प्रधोगिकी के आधार पर विकसित हुआ है  । 
इस लिए ही आज भारतीय स्वदेशी अपनाकर सम्पूर्ण विश्व मे अपने झंडे गाड़ चुका है 
वही आज हमारे देश के होनहार सॉफ्टवेयर इंजीनियर की अथक प्रयास से हमारे साफ्टवेयर के बढ़ते निर्यात सरकार की गलत नीतियों के बावजूद देश को लाभान्वित कर रहे । 
मेरा (हिमांशी शर्मा ) का मानना है कि अब भी बहुत समय है देश को एक ओर स्वदेश आंदोलन के लिए तैयार रहने के लिए । 
देश को जरूरत है विदेशी निवेश  और भूमंडलीकरण के कारण नही बल्कि हमारे संसाधनों ,वैज्ञानिकों और उत्कृष्ट मानव संसाधनों की । अब भी समय है  कि सरकार  विदेशी निवेश के मोह को त्याग कर  स्वदेशी यानी स्वदेशी संसाधन ,स्वदेशी प्रोधोगिकी ओर स्वदेशी मानव संसाधनो के आधार पर विकास करने की मानसिकता अपनाए ।
मैं हिमांशी शर्मा आप सभी से अपील करती हूं कि अपने देश मे निर्मित तथा स्व अपने संसाधनो से बनाई हुई  वस्तुएं ही खरीदे ताकि देश का कामगार अपने हाथों से बनी वस्तुओं को बेचकर या देश मे निर्यात कर अपनी आर्थिक स्थिति को मजबूत कर सके
क्योंकि हिदुस्तान में स्वदेशी के आधार पर आर्थिक मजबूती एवं विकास ही एक मात्र विकल्प है । 

 रिपोर्ट विमलेश तिवारी
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