निर्भया के चारों दोषियों को अलग-अलग फांसी देने के आदेश देने से दिल्ली हाईकोर्ट के इनकार करने के बाद यह मामला अब अगले माह तक खिंच सकता है। हाईकोर्ट ने दोषियों से कहा है कि वह सात दिन के अंदर अपने सभी कानूनी विकल्पों का इस्तेमाल करें, लेकिन सवाल यह है कि सात दिन में यह संभव कैसे होगा। केंद्र सरकार ने हाईकोर्ट के इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। जब तक इस चुनौती का निपटारा नहीं होगा, तब तक दोषी अपने विकल्पों के इस्तेमाल के लिए रुक सकते हैं।
आपराधिक न्यायशास्त्र में स्पष्टता नहीं : आपराधिक कानून के जानकारों के अनुसार डेथवारंट पर स्टे और एक ही अपराध के दोषियों को अलग-अलग सजा देने की मांग के बारे में आपराधिक न्यायशास्त्र में स्पष्टता नहीं है। सुप्रीम कोर्ट इस पर विस्तृत सुनवाई करके व्यवस्था देगा। जाहिर है कि समय लगेगा। चारों दोषियों में से एक पवन गुप्ता ने अब तक सुप्रीम कोर्ट में क्यूरेटिव याचिका के विकल्प का प्रयोग नहीं किया है और उसके बाद वह राष्ट्रपति के यहां दया याचिका दायर करेगा। ये दो विकल्प उसे मुहैया रहेंगे और सात दिन की यह समय सीमा मौत की सजा पाए कैदियों पर सख्ती से लागू करना संभव नहीं है।
निर्भया केस: केंद्र सरकार की याचिका खारिज, कोर्ट ने कहा- दोषियों को अलग-अलग नहीं हो सकती फांसी
दिल्ली हाईकोर्ट चार दोषियों की फांसी पर रोक को चुनौती देने वाली केंद्र की याचिका को खारिज कर दिया है। कोर्ट ने कहा है कि चारों दोषियों को अलग अलग फांसी नहीं दी जा सकती।
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जल्दबाजी से परहेज : सुप्रीम कोर्ट ने शत्रुघ्न सिंह चौहान केस (2013) में स्पष्ट कहा है कि फांसी तब तक नहीं होगी, जब तक वे सभी विकल्प न आजमा लें। इस बारे में उन्हें किसी समय सीमा में नहीं बांधा गया है। फांसी ऐसी सजा है, जिसे देकर दोषी को वापस नहीं लाया जा सकता। इसलिए इसमें इंतजार करना जरूरी है और जल्दबाजी से इसमें परहेज किया जाता है। पांच जजों की संवैधानिक पीठ के इस फैसले को केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। केंद्र ने कहा है कि यह फैसला दोषी केंद्रित है। इसमें दोषियों के अधिकारों का ही ख्याल रखा गया है। समाज और उनके अपराध के पीड़ितों के बारे में कुछ नहीं कहा गया है। कोर्ट इस पर विचार कर रहा है।
जटिल प्रक्रिया : जानकारों के अनुसार क्यूरेटिव याचिका दायर होने पर उसे उसी दिन ही निपटाया जा सकता है, लेकिन इसके बाद उसके बाद उसे सात दिन और मिलेंगे। इसके बाद राष्ट्रपति के पास जाने का विकल्प मौजूद होगा। इसमें भी दो दिन लग सकते हैं। यहां से दया याचिका खारिज होने के बाद उसे फिर सात दिन मिलेंगे। चारों दोषियों में से सिर्फ एक मुकेश ही है जो सभी विकल्पों का इस्तेमाल कर चुका है। उसने दया याचिका भी दायर की थी और उसके खारिज होने को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जा चुकी है। सुप्रीम कोर्ट ने इसे खारिज कर दिया है। मुकेश ने कहा था कि सरकार ने राष्ट्रपति को दया याचिका भेजते समय सभी दस्तावेज नहीं रखे थे। लेकिन उसकी यह दलील कोर्ट ने खारिज कर दी। वहीं, विनय शर्मा की दया याचिका को राष्ट्रपति ने शनिवार को खारिज की है। उसके पास सात दिन हैं। अब देखना यह है कि वह इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देगा या नहीं और देगा तो किस आधार पर देगा। इसके अलावा अक्षय कुमार ठाकुर ने शनिवार को ही राष्ट्रपति के यहां दया याचिका दायर की है।
सरकार की देरी पर सवाल : मामले का सबसे अहम पहलू दिल्ली हाईकोर्ट की इस मामले में की गई टिप्पणी है कि दोषियों को 2017 में फांसी की सजा दे दी गई थी। उसके बाद से सरकार क्यों चुप बैठी रही। उसने मौत के वारंट के लिए सेशन कोर्ट में अर्जी में क्या नहीं लगाई। यहां तक कि एक अभियुक्त ने 900 दिन की देरी से सुप्रीम कोर्ट में समीक्षा याचिका दायर की थी। इस देरी का सरकार के पास कोई माकूल जवाब नहीं है। सरकार कह सकती है कि दोषियों में से कुछ ने इस दौरान अपने कानूनी विकल्पों के इस्तेमाल किए थे, जिसके लिए सरकार इंतजार करती रही। मगर, इस मामले में यह बताना जरूरी है कि 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने खालिस्तानी आतंकी देवेंदरपाल सिंह भुल्लर की मौत की सजा को इस आधार पर माफ कर दिया था कि सरकार ने उसकी दया याचिका तीन वर्ष तक राष्ट्रपति को अग्रसारित नहीं की थी। हालांकि, इसमें उसके मानसिक रूप से बीमार होना भी एक कारक भी था, जिससे वह फांसी से बच गया। 
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