होलाष्टक के दौरान शुभ कार्य से बचना चाहिये। फाल्गुन शुक्ल अष्टमी से होलिका दहन तक अर्थात पूर्णिमा तक होलाष्टक रहता है। 
शाश्त्रो के अनुसार व्यास, रावी, त्रि पुष्कर, गंगा-गोदावरी के मध्य क्षेत्रो में ही होलाष्टक दोष माना जाता है। गंगा के उत्तर में होलाष्टक दोष नई रहता। 
22 की रात से अष्टमी का मान शुरू हुआ है इसलिए 23 फरबरी से होलाष्टक माना जाएगा, जो की होलिका दहन तक रहेगा। 
इस दौरान मौसम की छटा में बदलाव दिखने लगता है और सर्दिया वापसी का रुख करती है।

*आचार्य डॉ प्रदीप द्विवेदी*
पत्रकार एवं आध्यात्मिक लेखक
अध्यक्ष- स्वामी विवेकानंद व्यक्तित्व विकास संस्थान
उपाध्यक्ष- राधा कृष्ण ज्योतिष शोध एवं योग संस्थान
प्रदेश सचिव (उत्तर प्रदेश) - अंतराष्ट्रीय ब्राह्मण संसद, दिल्ली
जिलाध्यक्ष- नवयुग पत्रकार विकास एसोसिएसन

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